

हो रहा है मुझे आभास
विकास के बदले हो रहा विनाश !
कभी प्यास बुझाते थे जो कूप प्यासे पथिको की
आज उन्हें ही लग गए है प्यास !
कभी दोपहर की तेज किरणों से बचाते थे जो वृक्ष ,थकेहारे पथिको को
आज उन्हें ही है छांव की तलाश !
हो रहा है मुझे आभास
विकास के बदले हो रहा विनाश !
कभी वसंत आते ही कोयल कूक पड़ते थे ,बैठ मंजर से लदे आम की डालियों पर
आज कान तरस रहे है, सुनने को वो मधुर आवाज़ !
कभी सावन की घटा छाते ही , मोर करने लगते थे नृत्य अपने पंख फैलाकर
आज नयन बरस रहे है ,देखने को वो हँसी मिजाज !
कभी उड़ाए थे जो लोग मिलकर ,ढेर सारे सफ़ेद कबूतर
आज अपने-अपने घर कर रहे है ,कुश्ती का अभ्यास !
हो रहा है मुझे आभास
विकास के बदले हो रहा विनाश !
कभी उत्सव आते ही ,वतन में छा जाती थी खुशहाली
बहुत उत्साह से मनते थे,होली ,ईद ,बकरीद,दिवाली
आज सभी चले गए है ,हथियार लिए सरहद पर
हो गया मेरा वतन ,जवां दिलो से खाली
कहाँ गुम हो गया ,वो हर्ष और उल्लास !
हो रहा है मुझे आभास
विकास के बदले हो रहा विनाश !
कभी प्यार होता था, केवल प्यार
आज प्यार का हो रहा है व्यापार
इस छोटे से दिल में रहने की ,तमन्ना नही रही किसी की
सब करना चाहते है ,अपने क़दमों में संसार
लगता है अमृत ने भी खो दिया मिठास !
हो रहा है मुझे आभास
विकास के बदले हो रहा विनाश !
आज कह रहा हूँ ,मै इस जगत-प्राणी से
खुद को सर्वशक्तिमान समझने वाले, अभिमानी से
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है,अभी भी है रण पर अपना वश
अन्यथा हमारा-तुम्हारा ,पूरी दुनिया का हो जायेगा विधवंस
आज फिर भी न हो रहा है लोगो को मेरे बातो का विश्वास
पर ,हो रहा है मुझे आभास
विकास के बदले हो रहा विनाश !
विकास के बदले हो रहा विनाश !
11 comments:
कभी प्यार होता था, केवल प्यार
आज प्यार का हो रहा है व्यापार
इस छोटे से दिल में रहने की ,तमन्ना नही रही किसी की
सब करना चाहते है ,अपने क़दमों में संसार
लगता है अमृत ने भी खो दिया मिठास !
हो रहा है मुझे आभास
विकास के बदले हो रहा विनाश !........
इतनी जबरदस्त सच्चाई को उतार के
एक सही रेखा खिंची है तुमने,बहुत ही अच्छी है ये रचना.....
लगता है अमृत ने भी खो दिया मिठास !
हो रहा है मुझे आभास
विकास के बदले हो रहा विनाश !..
sach kaha aapne.....achchhee lagee
aapkee rachna....
aabhaar
shubh-kamnaen
कभी प्यास बुझाते थे जो कूप प्यासे पथिको की
आज उन्हें ही लग गए है प्यास !
कभी दोपहर की तेज किरणों से बचाते थे जो वृक्ष ,थकेहारे पथिको को
आज उन्हें ही है छांव की तलाश !
हो रहा है मुझे आभास
विकास के बदले हो रहा विनाश !
ved ji bhaut sunder panktiyan
aapki baat sahi hai vikas ke badle vinaash ho raha hai
aaj ka aiana ..jise ham sabko dekhna hi hoga ...warna ahoga sarvnash ..
rachna mein bhaut see baate dil ko chhoo gayee...
acha laga apki rachna padna...
नए चिट्टे की बधाई, लिखते रहें और हिन्दी ब्लॉग्गिंग को समृद्ध करें...
आपका मित्र
सजीव सारथी
very nice
वाह ! ऐसा सच्चा आभास हर किसी को होना चाहिए हर किसी इस बात का आभास होना चाहिए कि विकास के बदले हो रहा विनाश क्यूँ हो रहा उसका कारण भी पता होना चाहिए क्यूँ हमारी परंपरा धूमिल हो रही है क्यूँ ऐसा है इन सवालो के जवाब सब तुम्हारे अन्दर ही छिपे हैं घुद को जगाओ पता चाल जायेगा .....
आपने बहुत ही जागरूक करने प्रेरित करने वाली रचना लिखी है बधाई.....बहुत सुन्दर...
very..........very nice!!!!!!
bahut achi rachna lagi....likhte rahe...god bless u
nice one keep it up
kya bat hai...
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