Saturday, September 27, 2008

मेरा वतन मुझे याद आ रहा है............

वतन की याद में ..........................

मेरा वतन मुझे याद आ रहा है !
मेरा भारत मुझे याद आ रहा है !

माँ से लोड़ी सुने बिना , नींद न आती थी रातो में
बाबा से डांट सुने बिना, नींद न जाती थी आँखों से
सुबह-सुबह श्रधालुओं का वह मंगलगान,याद आ रहा है !
मेरा वतन मुझे याद आ रहा है !

करते थे अठखेलियाँ , यारों के संग मिलकर
चोट लगती थी मुझको ,तो होता था सबको दर्द बराबर
यारों के दिल में मेरे लिए वह सम्मान,याद आ रहा है !
मेरा वतन मुझे याद आ रहा है !

एक नन्ही सी गुड़िया मुझसे कहती थी ,मै करती हूँ तुमसे ढेर सारा प्यार
मत छोड़ जाना मुझे तन्हा ,रोक न सकूँगी आंसू की धार
कभी न लगा मेरे बिना उसका मन,याद आ रहा है!
मेरा वतन मुझे याद आ रहा है!

छोटे-छोटे भाई मेरे करते थे खूब सेवा
बड़े-बड़े भाई मेरे देते थे मुझको मेवा
राखी का दिन कभी भूली न मेरी प्यारी बहन, याद आ रहा है!
मेरा वतन मुझे याद रहा है!

होली के दिन गली-गली जाकर ,करते थे हुरदंग
ईद भी था मैंने मनाया ,गले मिल सबके संग
दीप वाले दिन दादी माँ से सुनी थी दास्ताँ-ए-रामायण, याद आ रहा है!
मेरा वतन मुझे याद आ रहा है!

जब आते थे विजय-पर्व वाले दिन ,थाम लेते थे हर हाथ तिरंगा
चाहे हो पंजाब ,सिंध ,गुजरात ,मराठा ,द्रविड़ ,उत्कल ,बंगा
वतन के वीर सपूतों को मै करता था झुककर नमन, याद आ रहा है!
मेरा वतन मुझे याद आ रहा है!

छोड़ आया मै ,माँ-बाबा का लाड-दुलार
दादी माँ के किस्से अपार
भाई-बहन और ढेर सारा यार
उस नन्ही गुडिया को भी न भुला ,जो करती थी मुझसे बेहद प्यार
चंद सिक्कों के लिए, मै वतन छोड़ क्यों आया सात-समंदर पार
आज मेरे संग कोई नहीं है
बस है मेरा अकेलापन ,जान मार रहा है!
मेरा वतन मुझे याद आ रहा है!

आज वतन से एक ख़त आया है, मेरे नाम पर
आज बहुत खुश हूँ मै ,इस ख़त को पढ़कर

माँ संभाले रखी है मेरे लिए ,ममता का चादर
बाबा ने कहा है ,अब न जगायेंगे तुम्हे सुबह-सुबह डांटकर
नन्ही सी गुड़िया भी मेरे लिए ,भुलाए बैठी है सारा संसार
मेरे यार आज भी कर रहे है मेरा इंतज़ार
मेरे भाई मुझसे मिलने के लिए है बेकरार
मेरी बहन मनाएगी हँसकर ,इस बार राखी का त्योहार
पर!
न सुन पाऊँगा दादी माँ से अधूरे किस्से
वह तो चली गयी मुझसे भी बहुत दूर, मुझसे रूठकर
पतझड़ गुम हो गए है न जाने कहाँ ,वतन मे छाई है बहार
मेरे राह मे बिछने को है हर कली तैयार
मेरी मातृभूमि खुशबू बिखराएगी अपनी आँचल लहराकर
नगाड़े भर रहे हुँकार
खेत-खलिहान सब सज गए है ,कोयल कूक रही डाली पर
वह मेरा बड़ा सा आँगन ,छोटा सा घर-बार
है मेरे कदम चूमने को वह तत्पर
मेरा वतन दे रहा है मुझे आवाज़ बार-बार
अब आना तो फिर मत करना ,छोड़ जाने की बात भी भूलकर !
शायद!
फिर गायेंगे सब मिलकर मेरे स्वागत मे जय-गान याद आ रहा है!
मेरा वतन मुझे याद आ रहा है!
मेरा भारत मुझे याद आ रहा है!

Sunday, September 14, 2008

माँ


माँ को समर्पित



माँ
तू सुन रही है न
मेरी आवाज़
अपने
जिगर के टुकड़े की आवाज़
तू समझती है
मै बड़ा हो गया हूँ
भूल गया हूँ
मै
अपने बचपन की सारी बात
नही माँ ,नही
मुझे सबकुछ याद है !

जब तुम मुझे
गोद में उठाकर
रात में छत पर जाती थी
मै तुमसे कहता था
'चाँद ला दो न ,माँ
चाँद ला दो न ,माँ '
फ़िर
तुम मुझे बहुत समझाती थी
तुम मुझे बहुत प्यार करती थी
इसलिए की
मै चाँद को भूल जाऊं
पर मै नहीं भूल पाता था
उसे
मै तुमसे फिर कहता था
' चाँद ला दो न ,माँ
चाँद ला दो न, माँ '
तब तुम कहती थी
ठीक है
अभी सो जा, कल ला दूँगी
लेकिन मै नहीं मानता था
मै कहता था
अभी ला दो न ,अभी ला दो न माँ
मै तुम्हे बहुत परेशान करता था
अंत मे
तुम मुझे पिटती थी
खूब पिटती थी
मै खूब जोड़-जोड़ से रोता था
पर
उस चाँद को नहीं भूल पाता था
फिर
तुम मुझे
लोड़ी सुनाते-सुनाते ,थपकियाँ देते-देते
सुलाने की कोशिश करती थी
मै भी चाँद को याद करते-करते
रोते-रोते
सो जाता था
और फिर
सबकुछ भूल जाता था
उस चाँद को भी
उस समय मुझे समझ मे नहीं आती थी
तुम्हारी बात
पर अब समझता हूँ
इतना आसान नहीं है
चाँद को पाना !

माँ
तू सुन रही है न
मेरी आवाज़
हाँ ,सुन
जानती है माँ
एक लड़की मुझे बेहद पसंद है
मै उसे बेहद प्यार करता हूँ
कभी परेशान नही करता हूँ उसे
पर
मै उसको नापसंद हूँ
वह मुझसे नफरत करती है
पता नही
क्यो ?
ऐसा क्या नही है ?
मुझमे
पर, माँ
मुझे अच्छी तरह से याद है
' तुम्हारी नजर मे मै सबसे अच्छा था ,अच्छा हूँ
तुम्हारी नजर मे मै सबसे खुबसूरत था ,खुबसूरत हूँ
तुम मुझे राजा कहकर पुकारती थी ,पुकारती है
तुम मुझसे अलग होकर नहीं रह पाती थी,नहीं रह पाती है
तुम मुझसे बेहद प्यार करती थी,करती है '
एक बात बोलू माँ
'उसे देखने के लिए, अपनी आँखे दे दे न
उसे बोलने के लिए अपनी आवाज़ दे दे न
उसे अपनी हृदय दे दे न '
माँ ,अबतक तुने बहुत कुछ दिया
जितना माँगा उससे कहीं ज्यादा दिया
माँ, उस लड़की को बोल न
समझा न उसे
उसे बोल न
मेरा लाडला तुम्हे बहुत चाहता है
वह तुम्हारे बिना नहीं जी सकेगा
अगर वह नहीं माने, मुझे खूब डांटना
तूम मुझे खूब पीटना माँ ,खूब पीटना
मै रोना चाहूँगा माँ
मै जी भर के रोना चाहूँगा
फिर
तुम मुझे अपने गोद मे सुलाकर
मुझे लोड़ी सुनाना ,मुझे थपकियाँ देना
लोड़ी सुनते-सुनते ,उसे याद करते-करते
शायद नींद आ जाए
और
मै सबकुछ भूल जाऊं
और
मै समझ जाऊं
इतना आसान नहीं है
किसी को अपना बनाना
तुम्हारा प्यार किसी ओर में तलाश करना !

माँ
तू सुन रही है न .............................................

Wednesday, September 10, 2008

एक अजनबी

वो अजनबी अब अपना सा लगने लगा है
मेरी जिंदगी में फ़िर सितार बजने लगा है
तुम आना कभी मेरे ख्वाब में , ' मेरी कविता ' बनकर
मेरी आँखों में अब फ़िर सपना सजने लगा है !

मै अकेला नहीं रहा, इस जिंदगी के सफ़र मे
मेरा हमसफ़र अब मेरे साथ चलने लगा है
मेरे दिल को भी गुमान रहता है आज-कल
की अब इसमें भी कोई रहने लगा है !

बहुत दिनों से सोच रहा हूँ , एक बात कहना अजनबी से
ना उड़ा दे हँसी में , ये डर लगने लगा है
अब ' वेद प्रकाश ' भी बड़े शौक से बर्बाद हो रहा है
ऐसा लगता है उसे भी , मोहब्बत होने लगा है !

Monday, September 8, 2008

प्रेम की भाषा.......

कल ही तो आयी थी
तुम
मेरी जिंदगी में
और
आज जा भी रही हो
आख़िर किस बात की सजा तुम मुझे दिए जा रही हो !

मै नहीं कहूँगा
तुम्हे
कुछ देर और रुको,
कल जो कहना चाहता था
मै
वह आज सुनो,
मेरे गले लगकर न सही,
आराम से मेरे पास बैठकर न सही,
कुछ देर और
रुक कर न सही,
जाते-जाते ही
मेरे दिल की आवाज़ सुनो
मेरा दिल तुमसे कह रहा है
मेरी जिंदगी मे आकर
मेरे अँधेरे मन मे दीप जलाकर
उसकी रौशनी मे 'प्रेम की भाषा' सिखायी
और
आज
बोलने लगा
तो
तुम
बिना सुने ही जा रही हो
किसे सुनाऊँगा तुम्हारी सिखायी हुई
'प्रेम की भाषा'
किसे समझ मे आती है यहाँ
'प्रेम की भाषा'
कोई सुने या न सुने
कोई समझे या न समझे
सिर्फ
तुम्हारे लिए
मै बोलूँगा
'प्रेम की भाषा'
तुम जा रही हो , जाओ
क्यों ?
मै नहीं पूछूँगा
पर
तुम्हारे बिना
मै कैसे जी पाऊँगा
मै कैसे जी पाऊँगा..............................