Thursday, August 7, 2008

भूल गयी हो तुम शायद ,न भूल पाया हूँ मै .............

कई जन्मो की मोहब्बत की दास्ताँ को समेटे मै अपनी इस कविता को अपनी मोहब्बत को समर्पित करता हूँ ...........
सूरज भूल गया हूँ मै ,चाँद भूल गया हूँ मै
सुबह भूल गया हूँ मै ,शाम भूल गया हूँ मै
तुम्हे देखकर आज फिर ,दिल लगाने का अंजाम भूल गया हूँ मै
याद दिला रहा हूँ तुम्हे आज ,बीते कई जन्मो के अपने इस रिश्ते को
भूल गयी हो तुम शायद ,न भूल पाया हूँ मै

वो दिन ,वो राते
सितारों के बीच होती थी तुमसे मुलाकाते
रात भर जगाती थी तुम मुझे ,मेरे ख्वाबो में आके
भूल गयी हो तुम शायद ,न भूल पाया हूँ मै

वो कसमे ,वो वादे
एक नयी दुनिया बसाने के इरादे
कितना हँसाती थी मुझे ,तुम्हारी वो बच्चो सी बाते
भूल गयी हो तुम शायद ,न भूल पाया हूँ मै

भटकता रहता था आवारों की तरह,मै यहाँ से वहां
तुमने बनाया था, अपने दिल मे मेरे लिए एक आशियाँ
तुमने ही तो दिखाया था मुझे, अपनी नजरों से ये ख़ूबसूरत जहाँ
भूल गयी हो तुम शायद ,न भूल पाया हूँ मै

बहुत सुना था हमने ,मोहब्बत का अफसाना
पर समझता नहीं था ,क्या होता है दिल का लगाना
तुमने ही तो बताया था मुझे ,क्यों हो जाते है लोग दीवाना
भूल गयी हो तुम शायद ,न भूल पाया हूँ मै

आज ऐसा लगता है ,तुमसे मिलके
मिली हो नयी जिंदगी,मुझे फिर से
आज फिर ये जमाना हमदोनो को ,अजनबी न बना पाए
आ तू मुझमे समां जाओ ,हम तुझमे समां जाए .......

4 comments:

रश्मि प्रभा... said...

प्यार से भरी कविता,.......
हमेशा कई जन्मों का लगता है,इस प्यार की तस्वीर
हमेशा जगती है.....
बहुत अच्छी.

!!अक्षय-मन!! said...

kya baat hai kya likha hai bahut hi badiya pyar ko dil se samjhaya hai...

गीता पंडित said...

pyaar ko samarpeet
ek pyaree see bhav-poorn rachna...

achchhee lagee...

Unknown said...

itna metha mat likhye ved bhai

dil lagane ke tammana fir jag jayege...